sansad me shunyakal kya hota hai?



संसद में क्या होता है प्रश्नकाल तथा 'शून्यकाल'?


  • दोनों सदनों की प्रत्येक बैठक के प्रारंभ में 1 घंटे (11 से 12 बजे) प्रश्‍न-काल कहा जाता है. और इसी समयावधि में प्रश्न किए जाते हैं, और फिर उन सवालो के उत्तर दिए जाते हैं इसे प्रश्न काल कहा जाता है।  
  •  संसदीय प्रश्न एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा संसद प्रशासन पर निगरानी रखती है, और इसका प्रयोग उन सब देशों में किया जाता है जहां 'प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र' की प्रणाली विद्यमान है 
  • इस प्रणाली में सरकार ने अपने प्रत्येक भूल-चूक के लिए संसद के प्रति संसद के द्वारा लोगों के प्रति उत्तरदायित्व होती है। 
  • प्रशासन का यह उत्तरदायित्व 2 स्तर पर होता है।  
  • सदन सामूहिक रूप से इस शक्ति का प्रयोग स्वयं और अपनी समितियों के माध्यम से भी करता है। 
  • व्यक्तिगत रूप से सदन के सदस्य इस अधिकार का प्रयोग, अन्य बातों के साथ-साथ, संसदीय प्रश्नों के माध्यम से करते हैं। 
  • संसद सदस्यों को लोक महत्व के मामलों पर सरकार के मंत्रियों से जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रश्न पूछने का अधिकार होता है। 
  • जानकारी प्राप्त करना प्रत्येक गैर सरकारी संसद सदस्य का अंतर्निहित एवं निर्बाध संसदीय अधिकार है। 
  • संसद सदस्य के लोगों के प्रतिनिधि के रूप में यह आवश्यक होता है कि उसे मूल उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए सरकार के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी हो। 

  • अतः प्रश्न पूछने का मूल उद्देश्य लोक महत्व के किसी भी मामले पर जानकारी प्राप्त करना और तथ्य जानना है। 
  • प्रश्न यह जानने के लिए किए जाते हैं, कि सरकार द्वारा घोषित अथवा संसद द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय नीतियों के उचित रूप से कार्य रूप दिया गया है या नहीं। 

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  • विभिन्न विषयों के बारे में यहाँ पर प्रश्न किए जाते हैं, और प्रश्न के द्वारा प्रशासन के लगभग सभी पहलुओ की छानबीन भी हो जाती है। 
  • दोनों सदनों (लोकसभा और राजयसभा) की प्रत्येक बैठक के प्रारंभ में 1 घंटे तक प्रश्न किए जाते हैं, और फिर उन सवालो के उत्तर दिए जाते हैं इसे प्रश्न काल कहा जाता है।  
  • इस काल के दौरान 'भारत सरकार से संबंधित मामले के प्रश्न' को उठाए जाते हैं और समस्याएं सरकार के ध्यान में लाई जाती हैं, ताकि किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए एवं लोगों की शिकायतें दूर करने के लिए किसी प्रशासनिक त्रुटि या ज्यादती का समाधान करने के लिए सरकार कार्यवाही कर सके। 
  • अतः इस काल के दौरान सरकार का परीक्षण होता है इसके अतिरिक्त खोजी और अनुपूरक प्रश्न पूछकर यह जानने के लिए मंत्रियों का भी परीक्षण होता है की वो अपने विभाग के कार्य को कितना समझते हैं। 
  • कभी-कभी मंत्रियों की त्रुटियों को या किन्ही स्थितियों में उनके अकुशल कार्यकरण को प्रकाश में लाने के लिए प्रश्न पूछे जाते हैं
  • प्रश्नकाल संसद की कार्यवाहीयो का सबसे अधिक दिलचस्प अंग है, लोगों के लिए, समाचार पत्रों के लिए, और सदस्यों के लिए कोई दिलचस्पी पैदा नहीं करना जितनी की प्रश्नकाल पैदा करता है। 
  • इस काल के दौरान सदन का वातावरण इतना अनिश्चित होता है कभी अचानक तनाव का होता है तनाव का बवंडर खड़ा हो जाता है
  • कभी-कभी प्रश्न पर होने वाले तर्क-वितर्क से जो उत्तेजना पैदा होती है वह सदस्यों की मंत्री और हाजिर -जबाबी और विनोद प्रियता से दूर हो जाती है। कई सदस्य समय-समय पर होने वाले अपनी विनोद चिंता से प्रश्नकाल में जान डाल देते हैं। 
  • यदि प्रश्न सामायिक रूचि के महत्वपूर्ण मामलों से संबंधित हो संक्षिप्त हो सारगर्भित हो प्रश्नकाल उपयोगी दिलचस्प और प्रायः सनसनीखेज बन जाता है यही कारण है कि प्रश्नकाल के दौरान न केवल सदन कक्ष बल्कि दीर्घा एवं प्रेस गैलरिया भी सदा लगभग भरी रहती है


 विभिन्न प्रकार के प्रश्नकाल:


संसद के दोनों सदनों में प्रश्न सामान्यतः मंत्रियो से अर्थात सरकारी सदस्यों से पूछे जाते है और वे मुख्यतः तीन श्रेणियों के होते है, अर्थात तारांकित, अतारांकित प्रश्न, और अल्प-सूचना प्रश्न।  प्रश्न कभी-कभी गैर सरकारी सदस्यों से भी पूछे जा सकते है जो संसद में उपस्थित होगा 


तारांकित प्रश्न:

इन प्रश्नो का सदन में मौखिक उत्त्तर दिया जाता है। सदस्यों द्वारा ऐसे प्रश्नो के अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते है, ऐसे प्रश्नो को तारांकित प्रश्न इस कारण कहा जाता है की इन पर तारांक लगाकर इनका विभेद किया जाता है। 

  

अतारांकित प्रश्न:


जिस पर तारांक नहीं लगा होता उसे अतारांकित प्रश्न कहते है, ऐसे प्रश्नो का उत्तर लिखित रूप से दिया जाता है न कि तारांकित प्रश्ननो के उत्तर कि तरह मौखिक रूप से। इसी कारण इस पर अनुपुरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते है। 


अल्प-सुचना प्रश्न:

  • अल्प-सुचना प्रश्न वह प्रश्न है जो कि अविलंबनीय लोक महत्व के मामले से सम्बंधित हो, यह साधारण प्रश्न के लिए निर्धारित दस दिन कि अवधि से कम सूचना देकर पूछा जा सकता है। 
  • ऐसा नहीं कि सदस्य जब चाहें, बिना पूर्व सुचना के, सदन में किसी मंत्री से प्रश्न पूछ सकते हैं। यदि ऐसे हो तो मंत्रीगण सदस्यों के प्रश्नो के संतोषजनक उत्तर देने कि स्थिति में नहीं होंगे।
  • विभिन्न स्तरों से संगत जानकारी एकत्रतित करने और सदन में मंत्री द्वारा दिए जाने के लिए सम्बन्ध विभाग को कुछ समय कि आवश्यकता होती हैं।  इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए दोनों सदनों में कार्य -सञ्चालन तथा प्रक्रिया नियमो का उपबंध किया गया हैं कि कोई सदस्य प्रश्न कि सूचना सम्बन्ध सदन के महासचिव को दे सकते हैं। 

  • जिस तिथि को प्रश्न का उत्तर माँगा जाएं उस तिथि से ऐसी सूचना कम से कम 10 दिन पूर्व और अधिक से अधिक 21 दिन पूर्व दी जानी चाहिए     


शून्यकाल का समय।  शून्यकाल (जीरो आवर)


  • सदन के दोनों सदनों के ठीक बाद का समय आमतौर पर 'शून्यकाल' अथवा (जीरो आवर) के नाम से जाना जाने लगा हैं। यह एक से अधिक अर्थो में शून्यकाल होता हैं। 
  • 12  बजे दोपहर का समय न तो मध्याह्न्न पूर्व का समय होता हैं, और न ही मध्याह्न्न पश्चात का समय। 
  • शून्यकाल 12 बजे प्रारम्भ होने के कारण इसे इस नाम से जाना जाता हैं। इसे 'आवर' भी कहा गया हैं क्योकि पहले 'शून्यकाल' पुरे घंटे तक चलता था , अर्थात 1 बजे म. प. पर सदन के मध्यान्ह भोजन के लिए स्थगित होने तक। 
  • बाद में सातवीं और आठवीं लोक सभाओ में, उदाहरण   शुन्य काल 5-15 मिनट्स तक ही चलता रहा 
  • आठवीं लोकसभा में 'शुन्य' कार्यवाही में अधिक से अधिक समय जो लगा वह 32 मिनट्स था। किन्तु अल्पकालीन नौवीं लोकसभा में स्थित एकदम बदल गयी जब अध्यक्ष रवि राय ने इसा नियम विरुद्ध 'शून्यकाल' को न्यायसंगत और सम्मानीय बनाने का निर्णय लिया और उसे व्यवस्थित करना चाहा। 
  • नतीजा यह हुआ कि प्रायः 'शून्यकाल' एक घंटे से अधिक तक चलता रहने लगा , कभी-कभी तो वह 2 -2 घंटे या उससे भी ज्यादा देर तक चलता रहने लगा जिससे सदन कि आवश्कता व्यस्थित कार्यवाही के शुरू होने कि प्रतीक्षा में बैठे मंत्रियो और सदस्यों को स्वाभाविक खीज कि अनुभूति हुई 
  • 'शून्यकाल' का यह नाम सर्वप्रथम 1960 और 1970 कि शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षो में किसी समय समाचार पत्रों में तब दिया गया जब बिना पूर्व सूचना के अविलंबनीय लोक महत्व के विषय उठाने कि प्रथा विकसित हुई। 


आधे घंटे की चर्चा:

आईये समझते है की क्या होता है संसद में आधे घंटे की चर्चा, किसी ऐसे प्रश्न से उत्पन्न होने वाले मामलों पर जिसका उत्तर सदन में दिया जा चूका हो, आधे घंटे की चर्चा लोक सभा में सप्ताह में तीन दिन अर्थात (सोमवार, बुद्धवार, शुक्रवार) को बैठक के अंतिम आधे घंटे में की जा सकती है, राज्य सभा में ऐसी चर्चा सभापति द्वारा द्वारा प्रयोजन के लिए नियत किसी दिन सामान्यतः 5 बजे म. प. से 5:30  म. प. तक की जा सकती है ऐसी चर्चा का विषय पर्याप्त लोक महत्व का होना चाहिए जो हाल के किसी तारांकित, अतारांकित या अल्प सूचना प्रश्न का विषय रहा हो और जिसके उत्तर के लिए किसी तथ्यात्मक मामले की स्पष्टीकरण करना आवश्यक हो। 

  1. जो सदस्य ऐसे चर्चा उठाना चाहते हो उसे उस दिन से 'कम से कम 3 दिन पहले लिखित रूप से सूचना देनी होती है। 
  2. किसी दिन बैठक की आधे घंटे की चर्चा की केवल एक सूचना रखी जाती है। 
  3. इसके अलावा, लोकसभा में एक सप्ताह में किसी एक सदस्य के नाम से एक चर्चा रखी जाती है और कोई सदस्य एक ही अधिवेशन में एक से अधिक चर्चाएं नहीं उठा सकता है। 

Key Point Includes

  • प्रश्नकाल का समय 
  • प्रश्नकाल क्या है?
  • शून्यकाल कब शुरू होता है?
  • शून्यकाल का समय
  • संसदीय प्रक्रिया में प्रश्नकाल क्या है
  • संसद में शून्यकाल
  • लोकसभा में शून्यकाल कितने समय का होता है
  • संसद में कितने काल होते हैं
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